Sunday 12 February 2017

श्री शिव तांडव स्तोत्रं!!!

शिव तांडव स्तोत्र!! शिव के उस परमभक्त रावण की वह करूणामय , उच्च आध्यात्मिक अवस्था की पुकार जिसके प्रभाव से द्रवित होकर शिव को कैलाश से उतरकर अपने प्रिय भक्त रावण के पास आने के लिए विवश होना पड़ा था ।वो इस स्तोत्र का प्रभाव ही था जिसने दशानन को रावण बनाया और सबसे बड़ी बात तो यह थी की रावण को खुद भगवान शिव ने रावण की उपाधि दी थी । इस स्तोत्र के दिव्य प्रभाव से ही रावण की लंका सदैव धन-धान्य से परिपूर्ण रहती थी । रावण इसका नित्य पाठ करता था । एक शिव भक्त होने के कारण मैं भी इसका गायन अपनी सुबह और शाम की पूजा में लयबद्धता के साथ करता हूँ । इस स्तोत्र के जप के द्वारा मुझे कई दिव्य अनुभूतिआँ हुईं हैं और कई बार दिव्य सहायता भी मिली है। आप भी इसका नित्य पाठ कीजिए और बना लीजिए अपने जीवन को भगवान शिव की कृपा से भौतिक और आलौकिक साधनों से सम्पन्न क्योंकि शिवमय होना ही शिव की वास्तविक भक्ति है

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाट पट्टपावकेकिशोरचंद्रशेखरे रतिःप्रतिक्षणं मम॥2॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर, स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।कृपाकटाक्षधोरणीनिरुधदुर्धरापदि, क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥3॥

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।मदांध सिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरेमनो विनोदमदभुतं बिभर्तुभूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकःश्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिंगभा-निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्‌ ।सुधामयुखलेखया विराजमानशेखरं महा कपालि संपदे शिरोजटालमस्तू नः ॥6॥

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-द्धनंजयाहुतिकृत प्रचंडपंचसायके ।धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबद्धकंधरः ।निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरःकलानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा, वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं, गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥ ॥9॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजंभृणामधुव्रतम्‌ ।स्मरांतकंपुरातकं भवांतकं मखांतकं  गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमदभुजंगमश्र्व्स,द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।धिमिद्धिमिद्धिमिद्धवनन्मृदंगतुन्गमंगल,ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्ड्ताण्डव: शिव:॥ ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजोर, गरिष्ठरत्नलोष्ठ्यो: सुहृद्विपक्षपक्षयो:।तृणारविन्दचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो:, समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥ ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकःशिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं, पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्त्ततम्।हरे गुरौ सुभक्तिमाशु यातिनान्यथा गतिं, विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम्॥14॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं, य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां, लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददातिशम्भु:॥15॥

इति श्री रावणकृतं शिवतांडव स्तोत्रं सम्पूर्णं ॥

1 comment:

  1. शिव तांडव स्त्रोत तम सुनने की कोई नुकसान भी है

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