Wednesday 15 February 2017

तंत्र वापसी !!!!

जय महाकाल!!!! कैसे हैं आप सब आशा है की महाकाल की कृपा से सब प्रसन्न होंगे।आपको हैरानी हो रही होगी की अचनचेत ही आचार्य मनदीप कहाँ से आ गए आज।  सच्च तो यह है की मैं आपसे दूर कभी गया ही नहीं था,बस माँ भगवती और अपने गुरुदेव जी की आज्ञा का पालन कर रहा था । मेरी तो facebook ID तक बन्द करने का आदेश था । एसा क्यों हुआ था उससे पुराने साधक अच्छी तरह से अवगत हैं । मैं दो वर्ष पूर्व Facebook पे Active था, इसलिए अपने गुरुदेव की आज्ञा का पालन करते हुए अब उस ID को Open तक नहीं करूँगा । इसलिए इस दूसरी ID का निर्माण किया । साधकजनों अब मेरे गुरूदेव ने मुझे आज्ञा दी है की मैं आप सब लोगों का मार्गदर्शन करूँ और तब तक करूँ जब तक देह में श्वास हैं ।मेरी साधना में कुछ नवीनीकरण करने के लिए ही गुरूदेव जी ने मुझे उच्च कोटि की साधनाएँ करने को कहा था । मैंने गुरूदेव जी के सान्निधय में जो भी दुर्लभ साधनाएँ आत्मसात कीं आज उन्हीं के बारे में आप को अवगत करवाउँगा ताकि नए साधकों को समझ आ सके की तंत्र कोई खेल नहीं है और एक खेल से कम भी नहीं है, इस खेल में निरंतर खेलने वाला ही विजयी होता है ।  मैंने आसुरी दुर्गा की साधना की जिसे कोई आम साधक करने की सोच भी नहीं सकता । इस साधना को करने के लिए जिस धैर्य की आवश्यकता होती है वो काफी लम्बे समय की साधना के बाद ही आता है । इस साधना के पहले चरण में ही साधकों के पराण पखेरू तक उड़ जाते हैं कयोंकि जब पूरा श्मशान जागृत होता है तो वहाँ होने वाला अट्ठाहस सिर्फ वही समझ सकता है जिसने पहले हर एक इतर योनि साधना की कठिनाईओं का सामना किया हो । इस साधना के अतिरिक्त मैंने खूँटी साधना की जो की नाथ संप्रदाय की अत्यंत प्रचंड साधना है । यह साधना सिर्फ गुरु मुख से प्राप्त होती है और इस साधना को करने का सब से बड़ा लाभ यह होता है की साधक गुहमलोक में प्रवेश कर सकता है । यह एक एसा लोक है जहाँ प्रवेश करने वाला साधक उन तंत्र साधकों से मिल सकता है जो कई हज़ार सालों से वहाँ रह रहे हैं तथा उनसे तंत्र विद्या के वह गुह्म रहस्य प्राप्त कर सकता है जो की अब सम्पूर्णतः लुप्त हो चुके हैं । इसके साथ ही मैंने कींकण शाबर मन्त्रों का अद्भुत ज्ञान प्राप्त किया जिसके द्वारा हम किसी भी दिव्य लोक के भीतर प्रवेश कर सकते हैं और वहाँ से देवताओं की दिव्य वस्तुओं को भूलोक में लेकर आ सकते हैं । परन्तु एसा एक बार करने के बाद मैंने इसका दुबारा प्रयोग नहीं किया क्योंकि एसा करने से दिव्यलोकों का संतुलन डगमगा जाता है इसलिए एक देवता के आग्रह पर मैंने वो वस्तु वापस कर दी थी जो उनसे ग्रहण की थी। अन्य  कई साधनाएँ जैसे सलीमा परी की साधना , बर्बर भावती क्रिया , आसुरी विद्या , मिथलेश नाथ शाबर आह्वान , भूँगट फट मंत्र प्रयोग , कालकंड सुबहानी साधना , मुस्लिम शाहे दस्तगीर अमल आदि किए । साधकजनों यह तो अभी बहुत कम साधनाएँ हैं जो साधनाएँ मैंने की हैं उन सभी को करने में कम से कम 10 वर्ष का समय लगता है लेकिन मैंने मात्र 2 वर्षों में ही सारी साधनाएँ काल विखंडन के माध्यम से संपन्न की हैं । मैं बहुत प्रसन्न हूँ की एक बार फिर आप सबके मध्य आने का अवसर मिला और आगे भी एसी साधनाएँ Post करूंगा जो आज तक आपने कहीँ भी सुनी नहीं होंगी, कयोंकि अब तंत्र का दुर्लभ ज्ञान कुछ उच्च कोटि के साधकों के पास ही रह गया है और अब Internet को Check करता हूँ तो देखता हूँ की मेरी दी हुई परी साधना को कई लोग अपनी Websites पे पोस्ट कर रहे हैं वो भी मेरे अनुभव के साथ। उनसे मात्र एक ही निवेदन करना चाहता हूँ कि अगर उनके पास वास्तव में कोई अमल या साधना है जो उन्होंने की है तो वो ही पोस्ट करें नहीं तो आगे चलकर उनका भविष्य ही नष्ट होगा । बस अब धैर्य के क्षण समाप्त हुए और उन दिव्य साधनाओं से अपने संपूर्ण जीवन का कायाकल्प करने के लिए तैयार हो जाइए । महाकाल आप सब को प्रसन्न रखें । जय महाकाल !!!!

Sunday 12 February 2017

श्री शिव तांडव स्तोत्रं!!!

शिव तांडव स्तोत्र!! शिव के उस परमभक्त रावण की वह करूणामय , उच्च आध्यात्मिक अवस्था की पुकार जिसके प्रभाव से द्रवित होकर शिव को कैलाश से उतरकर अपने प्रिय भक्त रावण के पास आने के लिए विवश होना पड़ा था ।वो इस स्तोत्र का प्रभाव ही था जिसने दशानन को रावण बनाया और सबसे बड़ी बात तो यह थी की रावण को खुद भगवान शिव ने रावण की उपाधि दी थी । इस स्तोत्र के दिव्य प्रभाव से ही रावण की लंका सदैव धन-धान्य से परिपूर्ण रहती थी । रावण इसका नित्य पाठ करता था । एक शिव भक्त होने के कारण मैं भी इसका गायन अपनी सुबह और शाम की पूजा में लयबद्धता के साथ करता हूँ । इस स्तोत्र के जप के द्वारा मुझे कई दिव्य अनुभूतिआँ हुईं हैं और कई बार दिव्य सहायता भी मिली है। आप भी इसका नित्य पाठ कीजिए और बना लीजिए अपने जीवन को भगवान शिव की कृपा से भौतिक और आलौकिक साधनों से सम्पन्न क्योंकि शिवमय होना ही शिव की वास्तविक भक्ति है

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाट पट्टपावकेकिशोरचंद्रशेखरे रतिःप्रतिक्षणं मम॥2॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर, स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।कृपाकटाक्षधोरणीनिरुधदुर्धरापदि, क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥3॥

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।मदांध सिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरेमनो विनोदमदभुतं बिभर्तुभूतभर्तरि ॥4॥

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकःश्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥

ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिंगभा-निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम्‌ ।सुधामयुखलेखया विराजमानशेखरं महा कपालि संपदे शिरोजटालमस्तू नः ॥6॥

कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-द्धनंजयाहुतिकृत प्रचंडपंचसायके ।धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥

नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबद्धकंधरः ।निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरःकलानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥8॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा, वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं, गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥ ॥9॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजंभृणामधुव्रतम्‌ ।स्मरांतकंपुरातकं भवांतकं मखांतकं  गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमदभुजंगमश्र्व्स,द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।धिमिद्धिमिद्धिमिद्धवनन्मृदंगतुन्गमंगल,ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्ड्ताण्डव: शिव:॥ ॥11॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजोर, गरिष्ठरत्नलोष्ठ्यो: सुहृद्विपक्षपक्षयो:।तृणारविन्दचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो:, समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥ ॥12॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌ ।विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकःशिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं, पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्त्ततम्।हरे गुरौ सुभक्तिमाशु यातिनान्यथा गतिं, विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम्॥14॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं, य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां, लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददातिशम्भु:॥15॥

इति श्री रावणकृतं शिवतांडव स्तोत्रं सम्पूर्णं ॥

अति तीक्ष्ण परी साधना!!!!

 परी साधना !!!!!!सौभाग्य और सौंदर्य का अद्भुत मिश्रण होती है । आपके जीवन पथ को पूर्णतः निष्कंटक बनाने का काम करती है एक परी । आपके जीवन में चाहे कितनी ही बड़ी मुश्किल कयूँ ना हो बस अपनी छोटी सी मदभरी मुस्कान से उस मुश्किल को आपके जीवन से एसे निकाल फेंकती है जैसे वो पहले थी ही नहीं । आपका कोई भी काम हो चाहे कितना ही बड़ा हो परी के लिए तो वो एक मामूली सी बात है । वो जीवन भर एक सच्ची प्रेमिका / सहेली की भांति आपकी हर एक आज्ञा का पालन करती है । मुझे यह साधना एक अति पवित्र आत्मा के आवाहन से प्राप्त हुई थी। यह बहुत ही तीक्ष्ण साधना है । इस साधना को वो ही कर सकता है जिसका हृदय पत्थर का हो यानि जो जीवन की किसी भी परिस्थिति से विचलित ना होता हो ।मैं एसी साधना किसी को नहीं देता ,परन्तु मेरे एक शिष्य की स्थिति अति गम्भीर है , इसलिए यह साधना दे रहा हूँ ताकि उसके साथ-साथ अन्य साधक भी इसका लाभ उठा सकें । मुझे आप सब की चिंता है और आप लोगों की कामनाओं तथा दुखों का आभास है । मैं तो बस यही चाहता हूँ कि आपका जीवन व्यर्थ ना जाए बल्कि आप अपने जीवन के समस्त सुखों को भोगकर अंततः मोक्ष प्राप्त कर सकें । एक बात और कहना चाहता हूँ कि यह साधना आपको पूरी Facebook या अन्य किसी तंत्र की Website पे नहीं मिलेगी । यह इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि बहुत से पाखंडी जो भोले -भाले साधकों को लूटते हैं इसे Copy paste करके अपने नाम से Post ना कर सकें ।

॥ साधना विधि ॥

इस साधना को आपको श्मशान में करना है । यह मात्र 1 दिन की साधना है । आपको पूर्णिमा पर इस साधना को करना होगा , क्योंकि इस दिन यह पवित्र  योनिआँ अति शक्तिशाली हो जाती हैं और अपने पूर्ण प्रभाव के साथ सिद्ध होती हैं । आपको करना क्या है कि स्नान करके श्मशान में रात के पूरे 10 बजे प्रवेश करना है । उत्तर दिशा की ओर मुख कर इस साधना को करना होता है । सबसे पहले आसन जाप पढ़ना है और फिर शरीर कीलन मंत्र पढ़कर अपने चारों ओर लोहे की छुरी से एक गोल चक्र बनाना है । इसके पश्चात लोहबान की अगरबत्ती जलाकर गुरु एवं गणपति जी का मानस पूजन करना है और उनसे साधना हेतु आज्ञा माँगनी है । अब आपको मंत्र जप प्रारम्भ करना होगा , जिसमें आप रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करेंगे जोकि प्राण-प्रतिष्ठित होगी । इस साधना में आसन एवं वस्त्र श्वेत होंगे । आपको लगातार मंत्र जप करते जाना है जब तक कि परी हाज़िर ना हो जाए । जैसे - जैसे आप मंत्र जप करते जाएँगे वैसे - वैसे सारा श्मशान जागृत होता चला जाएगा । कभी आपके सामने अति क्रूर इतर योनिआँ आएगीं और आपके उपर झपटेगीं , तो कभी जंगली जानवर और अन्य जीव आपकी साधना खंडित करने की कोशिश करेंगे । आपको बस किसी भी हालत में उस सुरक्षा चक्र से बाहर नहीं आना है नहीं तो वो इतर योनिआँ आपको नुकसान पहुँचा सकतीं हैं और आप पागल भी हो सकते हैं। अगर आप अपनी साधना से विचलित ना हुए तो कुछ देर के बाद सारा श्मशान शांत हो जाएगा और आपको आसमान से नीचे की ओर आती हुई एक परी नज़र आएगी जो बहुत ही सुंदर होगी । जब वो आपके पास आए तो पहले से लाकर रखे हुए गुलाब के पुष्पों की वर्षा उसके उपर कर दें और उससे वचन माँगे कि " आप मुझे वचन दें कि मैं जब भी इस मंत्र का एक बार उच्चारण करूंगा आपको आना होगा और जो मैं कहूँगा वो करना होगा तथा आपको आजीवन मेरे साथ मेरी प्रेमिका के रूप में रहना पड़ेगा"। इस तरह वो परी आपके वश में हो जाएगी और आप उससे कुछ भी करवा सकते हैं ।

॥ मन्त्र ॥ बा हिसार हनसद हिसार जिन्न देवी परी ज़ेर वह एक खाई दूसरी अगन पसारी गर्व दीगर जां मिलाईके असवार धनात ॥

 नोट 
॥साधकों !!! वो परी आपकी हर बात मानेगी पर आपको एक बात का ख्याल रखना है कि उस परी के साथ सम्भोग बिल्कुल नहीं करना है नहीं तो वो आपको छोड़कर चली जाएगी और फिर कभी सिद्ध नहीं होगी । वो आपको इस दुष्कर्म के बदले श्राप भी दे सकती है । इसलिए वो साधक ही इस साधना को करें जो खुद पर नियंत्रण रख सकें ।

॥ मेरा अनुभव ॥

जब मैंने यह साधना की थी तो लगभग 3 घंटे के बाद मेरे आगे और पीछे दो Cobra आकर बैठ गए थे । थोड़ी देर के पश्चात वो चले गये और फिर 2 सांड लड़ते हुए तेजी से मेरी तरफ आ रहे थे । उस समय एसा लगा कि अगर मैं अपनी जगह से ना उठा तो वो मुझे कुचल देंगे । पर मैंने दिल पर पत्थर रखा और मंत्र जप करता रहा । उसके पश्चात् बहुत ही भयानक सूरत वाले प्रेत हाज़िर हुए जो लगातार मुझ तक पहुँचने की कोशिश कर रहे थे । मैं थोड़ा सा तो डरा फिर सोचा कि जब तक इस सुरक्षा चक्र में हूँ ये मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । बस फिर क्या था मेरे होंसले के आगे परी को हार माननी पड़ी और वो मुझे सिद्ध हो गई ।हर हर महादेव !!!

मुस्लिम साधनाओं के मुख्य नियम!!!!

साधकजनों!! बिना नियमों के कोई भी साधना सफल ही नहीं हो सकती और जब बात मुस्लिम साधनाओं की हो तो नियमों का विशेष ख्याल रखा जाता है ।  मुस्लिम साधनाओं के नियम निम्नलिखित हैं :-

1.मुस्लिम साधनाओं में वज्रासन का प्रयोग किया जाता है ।

2. वस्त्र स्वच्छ एवं धुले हुए इस्तेमाल करने चाहिए ।

3. असत्य भाषण से बचना चाहिए और यथासंभव कम बोलना चाहिए क्योंकि हम जितना ज्यादा बोलेंगे मुख से असत्य तो निकलेगा ही साथ ही साथ हमारी उर्जा भी ज्यादा नष्ट होगी ।

4. इस्लामिक साधनाओं में माला को उल्टा फेरा जाता है यानि माला को घड़ी की दिशा के विपरीत(Anticlockwise) फेरते हैं । माला फेरते समय सुमेरू का उलंघन नहीं किया जाता और सुमेरू आने पर माला को पलट कर फिर जपा जाता है। इन साधनाओं में "तस्बी" का उपयोग होता है । तस्बी को हिंदी में"विद्युत माला" कहा जाता है जो कि हरे रंग की होती है और अँधेरे में चमकती है ।

5.साधना स्थल साफ़ एवं शांत होना चाहिए । साधना स्थल पर गंदगी नहींफैलानी चाहिए । हर रोज़ पोचा लगाना चाहिए । एक बात का विशेष ध्यान रखें कि शौचालय के पास कभी साधना नहीं करनी चाहिए और कमरे में भी शौचालय नहीं होना चाहिए ।

6. साधक को मन, वचन एवं कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।

7. साधक को शौच के बाद स्नान और लघुशंका के बाद हाथ पैर धोने चाहिए ।

8. मुस्लिम साधनाओं और अमलों में चमड़े से बनी हुई वस्तुओं से परहेज़ रखना चाहिए क्योंकि इन साधनाओं में  मुस्लिम पाक जिन्नातों की शक्ति मुख्यतः कार्य करती है ।

9. इन साधनाओं को करने के दिनों में और साधनाएँ और पूजा पाठ जैसे गायत्री मंत्र जप , शाबर साधनाएँ नहीं करनी  चाहिए क्योंकि इससे साधना में जो शक्ति संचार होता हैउसका क्रम अवरोधित हो जाता है और साधना में सफलता के अवसर कम हो जाते हैं ।

10. माला को जमीन के स्पर्श से बचाना चाहिए ।

11. सभी प्रकार की इस्लामिक साधनाओं में इत्र का प्रयोग तो होता ही है ज्यादातर इत्र को कानों पे रूई द्वारा  लगाया जाता है और कपड़ों पे छिड़का जाता है । इनमें  2 तरह के इत्र सबसे ज्यादा उपयोग किए जाते हैं 1. हीना का 2. गुलाब का । साधना में जिस इत्र का प्रयोग करने के लिए कहा गया हो उसी का प्रयोग करें और अगर कोई भी इत्र ना दिया हो तो हीना के इत्र का प्रयोग करें ।

12. अगर साधना में पुष्पों का प्रयोग करने के लिए कहा गया हो तो हमेशा तीव्र सुगन्धित पुष्पों का ही उपयोग करना चाहिए । गुलाब और चमेली के पुष्प इस दृष्टि से उत्तम हैं ।

13. साधना करने के बाद कुछ मिष्ठान का वितरण हमेशा करना चाहिए । इस बात को लोग हमेशा नज़रअंदाज़ कर देते हैं ,वो लोग यह नहीं जानते कि एसा करने से उनकी सफलता का प्रतिशत बढ़ जाता है ।

14. अगर साधना में भोग लगाने के लिए बोला गया हो तो दूध से बनी सफेद मिठाई का प्रयोग किया जा सकता हैं इसके लिए सफेद बर्फी उपयुक्त है ।

15. अगर धुप का उपयोग करने के लिए बोला हो तो लोहबान का ही प्रयोग करें । लोहबान को हर मुस्लिम साधना में इस्तेमाल करने से साधना अपना पूर्ण  प्रभाव देती है।

16.अगर संभव हो तो साधना के दौरान  मुस्लिम टोपी और तहमत(मुस्लिम लूँगी) धारण करनी चाहिए । 

17. साधना में सूती आसन का ही उपयोग करना चाहिए ।

18. अगर यंत्र बनाने के लिए बोला गया हो तो जिस वृक्ष की कलम का उपयोग करने के लिए कहा गया हो और जिस स्याही का प्रयोग करने को कहाहो उसका ही इस्तेमाल करना चाहिए ।अगर यंत्र बनाते समय कलम टूट जाए तो उस साधना को बंद कर देना चाहिए और किसी अन्य मुहूर्त पे उस साधनाको पुनः करना चाहिए । टूटी कलम और यंत्र को किसी मजार के पास रख आएँ ।

19. इस्लामिक दिनों के नाम :-1. इतवार - रविवार2. पीर - सोमवार3. मंगल - मंगलवार4. बुध - बुधवार5. जुमेरात - गुरुवार6. जुमा - शुक्रवार7. शनिचर - शनिवार इन नियमों का पालन अवश्य करें क्योंकि मैं आपको सफल होते हुए हीदेखना चाहता हूँ ।

सम्पूर्ण रक्षा विधान!!!!

साधना में रक्षा का अत्यधिक महत्व होता है । रक्षाविहीन देह से इतर योनिआँ बड़ी सरलता से सम्पर्क कर लेती हैं और साधना के दौरान हमारी साधनात्मक उर्जा को आत्मसात कर लेती हैं । इसके परिणाम स्वरूप हमारा मन उस इतर योनि के साथ जुड़ जाने के कारण विक्षिप्त हो जाता है और हमारा साधना में मन नहीं लगता । कभी हम बिमार पड़ जाते हैं ,तो कभी सर घूमने लग जाता है। हर एक साधक के अपने - अपने अनुभव हैं। एक साधक को शुद्ध एवं प्रमाणिक रक्षा मंत्र का ज्ञान अवश्य होना चाहिए क्योंकि जहाँ रक्षा मंत्र साधना के समय होने वाले अनिष्ट से हमें बचाता है , वहीं दूसरी ओर उस मंत्र के प्रमुख देवी / देवता को हमारे साथ रहने के लिए विवश कर देता है ।अरे भाई !!!!! मंत्र के देवता साथ होंगे तभी तो वह रक्षा करेंगे !! जिसका सीधा सा अर्थ है कि आपको उस देवी / देवता का सान्निध्य प्राप्त होगा !!यहाँ एक बात और कहना चाहूंगा कि मैं जो साधनाएँ एवं प्रयोग यहाँ देता हूँ वो पूरी तरह परख कर ही देता हूँ । मैं कोई आसमान से नहीं गिरा हूँ । अपने आप को बस एक साधारण साधक समझता हूँ और वही बने रहना चाहता हूँ । कई साधक मुझसे एसी साधनाएँ माँग लेते हैं जो मैंने की ही नहीं होती हैं तो मैं Direct उन्हें मना कर देता हूँ , क्योंकि मैं आपके कीमती समय का महत्व समझता हूँ । आपको एसे ही कहीं से भी उठाकर साधना नहीं दे सकता जो आपका समय एवं धन नष्ट करे । मित्रों !!! मैंने भी एक साधारण साधक की तरह तंत्र का यह ज्ञान तंत्र की किताबों , तंत्र Websites एवं कई तांत्रिको से प्राप्त किया है । लेकिन आपको प्रदान करने से पहले खुद परखा !!! दूध रिड़क कर जो माखन निकला सिर्फ वोही आपके सामने है। मेरा उद्देश्य मात्र आपके जीवन को आनंदमय बनाना है और जब तक जिंदा हूँ एसा करता रहूँगा ॥प्रस्तुत प्रयोग आपकी पूरी तरह रक्षा करने में समर्थ है । कभी - कभी भूत बाधा से ग्रसित व्यक्ति का भूत!! झाड़ने वाले पर ही आक्रमण कर देता है एसी स्थिति में यदि उस तांत्रिक ने अपनी पहले से रक्षा नहीं की हो , तो उसे बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है । कई बार साधक के मन में यह डर रहता है कि कहीं जो साधना वो कर रहा है वो गलत होने पर कोई विपरीत प्रभाव ना डाल दे तो वो साधक भी इस प्रयोग को कर सकता है ।साधक को इसका प्रयोग श्मशान साधना के समय अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह एक स्वयं सिद्ध रक्षा मंत्र है जो साधक की चारों ओर से रक्षा करता है ।॥ प्रयोग विधि ॥इस प्रयोग को करने के लिए साधक को चाहिए कि वो पीले वस्त्र एवं आसन का उपयोग करे तथा आसन पर वीरासन में बैठ जाए । फिर सरसों के दाने मुट्ठी में लेकर दसों दिशाओं में फेंकते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण पाँच बार करे ।

॥ मन्त्र ॥॥ हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंष्ट्रे प्रचंड चंडनायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूं फट् ॥( HOOM HOOM HREEM  HREEM KALIKE GHOR DANSHTRE PARCHAND CHANDNAYIKE DAANVAAN DARYA HANHAN SHARIRE MAHAVIGHAN SHEDYA SHEDYA SWAHA HOOM PHAT )

इस मंत्र को आप अपने नित्य पूजन के समय कर सकते हैं । इस मंत्र के प्रभाव से भगवान भैरव सारा दिन साधक की रक्षा करते हैं । इस मंत्र का सबसे बड़ा लाभ ही यह है कि रक्षा और दिग्बंधन एक साथ हो जाता है आपको अलग से कोई मंत्र पड़ने की आवश्यकता नहीं है । अगर साधक वैसे भी इसका 5 बार रोज़ उच्चारण करता रहे तब भी भगवान भैरव साधक को रक्षा प्रदान करते हैं । लेकिन यह तो आप भी जानते हैं कि विशिष्ट साधना एवं प्रयोग पद्धति का महत्व भी विशिष्ट होता है ।

॥ मेरा अनुभव ॥

मैं इस मंत्र का नित्य 5 बार जप करता हूँ । इस मंत्र से मन का सारा भय समाप्त हो जाता है और मुझे हमेशा अपने इर्दगिर्द एक सुरक्षा घेरा सा महसूस होता है ॥ॐ भं भैरवाय नम: !!!!!!!!!!

इतर योनि अवलोकन साधना!!!!


इस अनन्त ब्रह्मांड में मनुष्य अकेला नहीं है जिसका निर्माण भगवान द्वारा किया गया है । पेड़-पौधे, पशु- पक्षियों के इलावा कोई और भी है जो हमारी ही दुनिया में रहतीं हैं पर हमें दिखतीं नहीं । उनका हमें ज्ञान तो है पर प्रमाण नहीं । परंतु!! यदा-कदा वो किसी के सामने आ भी जाएँ , तो कौन यकीन करता है भाई!! क्योंकि दुनिया कहती है आँखों से देखी बात ही सत्य है । लेकिन आज की प्रस्तुत साधना आपको पूरा यकीन दिलाने के लिए है की हमारे इलावा और भी कोई है जो अगर हमारे वश में हो जाए तो वो अपनी शक्तिओं द्वारा पूरा जहान हमारे कदमों में लाकर रख सकती हैं । वो हैं इतर योनिआँ ।मनुष्य को भगवान ने उसके कर्मों के अनुसार मृत्यु उपरांत कई योनिओं मे विभक्त किया है जैसे : -भूत , प्रेत , पिशाच , राक्षस , ब्रह्मराक्षस , देव , यक्ष , गन्धर्व , किन्नर , पितृ , अप्सरा , परि , जिन्नात आदि ॥साधकों के लिए इन्हें सिद्ध करना किसी भयंकर चुनौती से कम नहीं होता क्योंकि इस संसार में कोई किसी का गुलाम बनकर नहीं रहना चाहता । हर कोई अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करना चाहता है तो ये योनिआँ कैसे यूं ही आपके वश में हो जाएँ । ये योनिआँ खुद को आपके वश से बचाने के लिये किसी भी हद तक जा सकतीं हैं । परंतु!! एक बार साधक इन्हें सिद्ध करले तो ये आजीवन साधक को वो सब कुछ देतीं रहती हैं जो साधक चाहता है । आपका वफ़ादार कुत्ता आपको एक बार काट सकता है पर ये योनिआँ अपनी शक्ति का प्रयोग आपके खिलाफ कभी नहीं करतीं । ये अपनी जान पर खेलकर भी आपके उपर आई मुसीबत खुद पर ले लेती हैं ।परंतु कई मेरे भाई साधक एसे भी हैं जो लाख कोशिश करते हैं किसी इतर योनि को वश में करने की और अन्य साधनाएँ भी करते हैं और बाद में थक हार कर बैठ जाते हैं जब उन्हें कोई अनुभूति नहीं होती । पर आज की यह साधना इतर योनिओं के दर्शन करने के लिए है जिसे अगर कोई नास्तिक भी करे तो वो भी इतर योनिओं के दर्शन कर अपना विश्वास इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड की इन गुप्त शक्तिओं पे दृढ़ कर सकता है। आप खुद इस साधना को करके देखिए और अवलोकन कीजिए उन शक्तिओं का जिनका अस्तित्व अति दिव्य होने के साथ - साथ गोपनीय भी है । पूरी कर लीजिए अपने मन की कामना विभिन्न प्रकार की इतर योनिओं के दर्शन करके क्योंकि तंत्र में शंका का कोई स्थान नहीं है ।" तंत्र निर्मल है , स्वच्छ है और सबसे महत्वपूर्ण बात कि तंत्र प्रत्यक्ष है । जो भी इसका अनुसरण करेगा वो निश्चित ही समस्त भौतिक सुखों को भोगते हुए अंततः मुझमें विलीन हो जाएगा "॥ एसा भगवान शिव ने कहा है ।इन योनिओं से आपको भय खाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो खुद भगवान शिव के सान्निधय में रहती हों और बेचैन होकर और किसी के बस में होकर अपनी मुक्ति के लिए तत्पर हों उनसे भय कैसा!!!!!
॥ साधना विधि ॥

दिन - अमावस्या ,साधना अवधि - 1 दिन , दिशा - उत्तर , वस्त्र एवं आसन - सफेद , माला - रूद्राक्ष की , साधना समय - रात 10 बजे । साधक को चाहिये कि वो वट वृक्ष की थोड़ी सी जटा जो लमक रही होती है तोड़कर ले आए और उसे अपने साधना कक्ष में बाजोट पर रख दे । याद रखिए उसे धोना बिल्कुल नहीं है । इसके बाद स्नान करें और अपने साधनाकक्ष में उत्तर की ओर मुख करके बैठे । गुरु पूजन एवं गणेश पूजन सम्पन्न करके उस जटा को अपने बाएँ हाथ में और माला दायें हाथ में पकड़ कर निम्न मंत्र की 11 माला संपन्न करें । इसके बाद किसी से बात किए बिना उस जटा को अपने तकिए के नीचे रखिए और सो जाइये । इससे आपको सपने में एसी - एसी इतर योनिओं के दर्शन होंगे जिनके बारे में आपने किसी किताब में ही पढ़ा या किसी से सिर्फ सुना होगा ॥

॥ मन्त्र ॥ ॐ हूं हूं फट( OM HOOM HOOM PHAT )

साधक को अगले दिन उस जटा को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए और माला को पुनः प्राण प्रतिष्ठित कर देना चाहिए ताकि  भविष्य में अन्य साधनाओं में इसका उपयोग किया जा सके ।

॥ मेरा अनुभव ॥

जब मैंने ये साधना की थी तब एसी - एसी इतर योनिआँ मेरे सामने आ रहीं थी जिनमें से कई के मुँह में से आग निकल रही थी और कई एक छोटे Pipe के समान मुख में लगातार खून और मांस  डालतीं जा रहीं थी । इसके पश्चात मुझे अप्सरा , परि और यक्ष एवं अन्य योनिओं के भी दर्शन हुए जो उग्र के साथ - साथ सौम्य भी थीं ।

तीव्र आकर्षण साधना!!!!

आकर्षण!!!!! वाह!! कितना प्यारा शब्द है । आज के दौर में कौन नहीं चाहता आकर्षण से युक्त होना । हर कोई चाहता है कि जब वो बात करे तो दूसरे उसकी बात ध्यान से सुनें । पर क्या एसा होता है वो भी हर किसीके साथ ? नहीं होता!! दोस्तों!! हमारे भीतर अनन्त ब्रह्मांड और वो दिव्य शक्तिओं के भंडार हैं जिन्हें अगर कोई जागृत करले तो पलभर में ही असंभव को संभव कर सकता है । हमारे भौतिक जीवन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हमारे अन्दर कितना आकर्षण है और मनुष्य तो क्या आपके अन्दर इतना आकर्षण होना चाहिए कि जब भी आप किसी देवता को प्रत्यक्ष करने के लिए साधना करें तो वो देवता बिना विलंब किए तत्काल आपके सामने उपस्थित हो जाए । कई मेरे भाई बहन एसा व्यापार करतें हैं जिसमें दूसरे लोगों को अपना सामान खरीदने के लिए प्रेरित करना पढ़ता है और इस काम के लिये वो अथक परिश्रम करतें हैं पर उनके अन्दर आकर्षण की कमी के कारण उनसे कोई सामान लेना पसन्द नहीं करता और वो लोग हमेशा घाटे में ही जीते हैं । चाहे फौज में चयन की बात हो, प्रेम संबंध की बात हो, पति - पत्नी में माधुर्य की या फिर Interview में सफलता की अगर आपके अन्दर आकर्षण है तो कामयाबी झक मारके आपके पीछे आएगी और आप जिन्दगी के उस मुकाम पर होंगे जिसके आप सिर्फ सपने ही देखा करते थे ।

॥ साधना विधि ॥

दिन - कोई भी , साधना अवधि - 5 दिन , समय - ब्रह्ममुहूर्त , आसन एवं वस्त्र - सफेद या पीला , दीपक - गाय के घी का , पुनः साधना करने की अवधि - 1 साल बाद , साधक को चाहिए कि सर्व प्रथम स्नान करे और इसके बाद सफेद या पीले वस्त्र धारण करे और आसन तथा बाजोट पर भी एक ही रंग के वस्त्र बिछाए । फिर अपने सामने एक घी का दीपक जगाए तथा गुरु पूजन एवं गणेश पूजन सम्पन्न करे । अब साधक को अपनी आँखें बन्द करके अपना ध्यान सहस्रार पे केंद्रित करना चाहिए और पूरे 1 घंटे तक मन ही मन इसी अवस्था में निम्न मन्त्र का जप करे ।

॥ मन्त्र ॥ ॐ नमो चैतन्याय हूं ( OM NAMO CHAITANYAAY HOOM )

साधक को यह प्रयोग बिना माला के 5 दिन करना चाहिए । साधना के दौरान आपको अपने अन्दर कई अद्भुत दृश्य दिखाई देंगे और साधना के बाद साधक खुद ही अनुभव करेगा कि उसके अन्दर एक प्रचंड आकर्षण शक्ति प्रविष्ट हो चुकी है । अगर आप सफलता के मायने जानते हैं और जीवन के हर एक क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं तो इस साधना को अवश्य सम्पन्न करें और इसे 1 साल में एक बार जरूर करें ताकि आपकी आकर्षण शक्ति क्षीण ना हो और आप सदा सुखी रहें ॥ हर हर महादेव!!!!!!!!!!!